तीन तलाक़ और हमारा समाज भाग-2.



रफ़्तार न्यूज़ • 13 जून • 23:11 pm 

• अनुराग श्रीवास्तव 

तीन तलाक़ ऐसा मसला है जो खत्म होने का नाम ही नही ले रहा है. मैंने इस पर पहले भी लिखा था आज इस पर फिर से लिखने जा रहा हूं क्योंकि एक बार फिर कुछ ऐसा हुआ है जो मुझे लिखने पर मज़बूर कर रहा है, लेकिन इस बार बात समस्या कि नही समस्या कि एक छोटी सी समाधान कि है.

जहां एक ओर उत्तरप्रदेश मे तीन तलाक़ का मामला गरमाया हुआ है वही उत्तरप्रदेश के सम्भल मे कुछ ऐसा हुआ जिसे देख यक़ीन हुआ कि मसला पूरी तरह से बिगड़ा हुआ नही है, यक़ीन हुआ कि समाज मे थोड़े बहुत ही सही बदलाव हो रहे है.

समाज मे मुस्लिम मर्दों को लेकर जो छवि बनी है वो छवि यहां आ कर टूट रही है, वो कहावत सही सिद्ध हो रही है जिसमें कहा गया है कि हर मर्द एक जैसे नही होते.

तीन तलाक को लेकर देश में छिड़ी जोरदार बहस के बीच मुसलमानों की ‘तुर्क’ बिरादरी ने बड़ी पहल करते हुए अपने समाज में ‘एक साथ तीन तलाक’ देने पर पाबंदी लगाई है और कहा है कि अब तीन तलाक के मामले में सारी गलती शौहर की मानी जाएगी. साथ ही पंचायत के पास उसे सजा देने का अधिकार होगा.
सम्भल के करीब 55 गांवों में फैली करीब 50 हजार आबादी वाली तुर्क बिरादरी की पंचायत गुरुवार को हाजीपुर गांव में बैठी थी जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया. पंचायत की अध्यक्षता करने वाले असरार अहमद ने बताया कि पंचायत ने एक ही बार में तीन तलाक देने की प्रथा को गलत बताते हुए कहा कि बैठक में तुर्क बिरादरी में इसपर पाबंदी लगाने का फैसला किया गया है.
उन्होंने बताया कि पंचायत का कहना है कि घरेलू झगड़ों को लेकर एक बार में तीन तलाक नहीं दी जाए. अगर कोई एक बार में तीन तलाक देता है तो उस मामले में पंचायत पूरी गलती शौहर की ही मानेगी. साथ ही पंचायत को लड़के को दंडित करने का अधिकार होगा.
अहमद ने बताया कि अगर किसी व्यक्ति का अपनी पत्नी से कोई विवाद है तो पहले अपनी शिकायत पंचायत में रखे. कैसे भी हालात हों, मगर एक बार में तीन तलाक नहीं दें. अगर जरूरी हो तो एक बार तलाक कहें और बीवी को कम से कम एक महीने का समय दें.

पंचायत ने ये भी कहा कि अगर किसी मर्द ने इस फ़ैसले के बाद भी ऐसी हिमाक़त कि तो उसे 2,00000 (दो लाख) जुर्माना, मेहर मे ली गई रकम और लड़की के परिवार से ली गई पूरी दहेज वापस करनी होगी. 
अब इस फ़ैसले से कम से कम तुर्क समुदाय कि औरतों ने चैन कि सांस ली होगी पर मुद्दा यही खत्म नही होता. असल मुद्दा तो अब शुरू होता है.

क्या ये फ़ैसला पूरे भारत मे मान्य नही हो सकते, क्या हर मुस्लिम मर्दों कि सोच इन मर्दों कि तरह नही हो सकता. यह फ़ैसला केवल औरतों के ही हित मे नही है इस फ़ैसले से मर्दों का भी हित होगा. समाज मे जो छवि मुस्लिम मर्दों कि बनी है वो बदलेंगी.

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