फेसबुक पर ऐसी तस्वीरें शेयर करने के पहले सोच लेना.

उम्र में मुझसे बीस-एक साल बड़े, मेरे एक बड़े अच्छे दोस्त कहा करते हैं कि भारत देश एक बिना ‘ह्यूमर’ का देश है. यहां लोग किसी भी बात पर हंस सकते हैं. और हंसने की बात पर ओफेंड हो सकते हैं. ये बात जितनी आसानी से कही गई, असल में इतनी आसान है नहीं. इसे समझने के लिए हमें अपने देश में होने वाली हर तरह की पॉपुलर कॉमेडी को देखना होगा. हमें देखना होगा हम किस तरह की बातों पर हंसते हैं. किस तरह की बातों पर बुरा मानते हैं.
आजकल फेसबुक पर एक मजाक चला है. किसी भी एक लड़की या लड़के की फोटो अपलोड करते हैं. लिखते हैं कि ये अपने लिए पति/पत्नी ढूंढ रहा है जिसका नाम फलाना है. इसलिए आप फलाने व्यक्ति को टैग करिए.
ये हंसने के लिए होता है. कि लोग अपने दोस्त को टैग करें और इस बात पर हंसें कि अब तो दोस्त को एक ‘बदसूरत’ पति या पत्नी मिलने वाली है. बदसूरत की परिभाषा इस बात से होती है कि अगला काला, मोटा, खराब दांत वाला, गंजा, या ऐसे किसी शारीरिक फीचर वाला हो जिसे हम आमतौर पर ‘सुंदर’ की परिभाषा में नहीं रखते हैं.
ये इसके कुछ उदाहरण है.
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(प्रतिभा मिश्रा के फेसबुक से साभार)

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कुल मिलाकर अगर कोई ‘सुंदर’ लड़की मिल गई तो लड़का लकी है. और न मिली तो आप उसकी टांग खींचिए, मजाक उड़ाइए, उस पर हंसिए. क्योंकि जिसकी फोटो में उसे टैग किया गया है, वो ‘बदसूरत’ है. उससे शादी हो गई तो समाज में क्या मुंह दिखाएगा लड़का.
रेसिस्म, सेक्सिस्म और बॉडी शेमिंग हमें हमेशा ह्यूमर उपलब्ध कराते रहते हैं. किसी मोटे, काले या अपंग व्यक्ति को देखकर हंसना अपने आप में ही लोगों के लिए कॉमेडी क्रियेट करता है. उनका होना ही हास्यास्पद है, उन्हें कुछ फनी कहने या करने की जरूरत नहीं होती.
जो तस्वीरें आपने ऊपर देखीं, उनमें से एक तस्वीर गैबरे सिडिबे की है. गैबरे एक अमेरिकी एक्ट्रेस हैं. एम्पायर नाम के टीवी शो में उन्होंने एक सेक्स सीन किया था. जिसका लोगों ने खूब मजाक उड़ाया था.



(गैबरे सिडिबे. सोर्स: डेली मेल)

फिल्मों और पॉर्न मूवीज में हम इतने ‘परफेक्ट’ शरीर देखने के आदी हो गए हैं कि हमसे हजम नहीं होता अगर हम एक प्लस साइज़, काली औरत को किसी मेनस्ट्रीम शो में टीवी स्क्रीन पर प्रेम करते हुए देखें. हां, हंसाते हुए देख लेते हैं. क्योंकि हमने मान लिया है कि मोटी एक्ट्रेस उसी के लिए बनी हैं.

गैबरे के लव सीन पर बना एक मीम.


इन मीम्स का भी गैबरे ने खूब जवाब दिया.
‘मैं, एक प्लस साइज़, काली स्किन वाली औरत ने प्राइम टाइम टीवी पर लव सीन किया. मैं नर्वस थी मगर मुझे बहुत मजा आया. मैंने खुद को सेक्सी और सुंदर महसूस किया और ये भी महसूस किया कि मैंने सीन को अच्छे से निभाया. जिन्हें खराब लगता है, लगता रहे. मुझे तो बहुत अच्छा लगा.’

टुनटुन यानी उमा देवी. शानदार एक्ट्रेस, शानदार सिंगर. मगर हमने उन्हें अक्सर कॉमिक रोल्स में देखा. जहां ये अपेक्षित था कि उनके मोटे होने पर हंसा जाए. ‘शराफत’ फिल्म ये सीन देखिए. देखते हुए आप पाएंगे कि इस तरह के सीन या छोटे रेफरेंस आपने कई फिल्मों में देखे हैं. जहां मोटी या दबे रंग वाली औरतों को एक ऐसी आफत के रूप में देखा गया जिस पर हंसा जा सकता है. जो एक साइड रोल में होगी और बीच बीच में लोगों को हंसाती रहेगी. वो कभी हीरोइन नहीं होगी क्योंकि हीरो का ‘लव ऑब्जेक्ट’ होने के लिए उसका शरीर परफेक्ट नहीं है.

इतना ही नहीं, हमारी कुछ बहुत अच्छी फ़िल्में, जो बॉलीवुड के इतिहास में ऐतिहासिक रहीं, आज उनको पीछे मुड़कर देखने में मालूम पड़ता है वो लोगों की आइडेंटिटी का मजाक उड़ा रही थीं. मसलन, ‘पड़ोसन’. नॉर्थ इंडिया में रहने वाले एक तमिल भरतनाट्यम टीचर पर हम हंसते हैं. क्योंकि वो गोरा नहीं है. वो हिंदी नहीं बोल पाता. और वो नाचता है. वो भी भरतनाट्यम. लड़के भला यूं नजाकत भरे डांस करते हैं क्या? हीरोइन उसकी कैसे हो सकती है?

मगर हम अपनी पुरानी फिल्मों या पुराने फिल्मकारों को दोषी नहीं मान सकते. कम से कम मैं तो नहीं मानती. क्योंकि ये फ़िल्में अलग सदी, अलग माहौल में बनीं. पर जो बात चिंताजनक है वो ये कि क्या हमारी फ़िल्में आज भी बदल पाई हैं?



फिल्म ‘मस्तीजादे’ का एक दृश्य, जिसमें सुरेश मेनन ने एक गे व्यक्ति का रोल किया है. एक ऐसा गे व्यक्ति जिसके हम ‘लड़की जैसे’ होने पर हंस सकें. ये फिल्म 40 साल पुरानी नहीं. 2016 में रिलीज हुई है. एक ऐसे साल, जिसमें हमने सेक्शन 377 के खिलाफ समलैंगिक समुदायों को सड़कों पर उतरते देखा. अपने हक के लिए लड़ते देखा.
अब बंद हो चुका ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ का आधा भाग कपिल की पत्नी का किरदार कर रहीं सुमोना के चेहरे, होंठ,  बात या आदतों का मजाक उड़ाने में जाता था. सुना है कपिल के नए शो में पिछले शो के पंच यूज करने की इजाज़त नहीं थी उन्हें, इसलिए अब सुमोना के होंठों पर जोक नहीं मारते. मगर जिसने भी कलर्स पर उनका पिछला शो देखा होगा, उसे वो सीन याद होंगे.
हम कह सकते हैं कि यूं तो हर मजाक किसी न किसी को आहत करता है. तो क्या हम मजाक ही न करें? बदले में मेरा यही जवाब होगा कि समाज के किसी भी कमजोर वर्ग, जो सालों से खुद को ‘नॉर्मल’ में गिने जाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है, उसका साथ देने के बजाय उसका मजाक उड़ाकर ही हंस सकते हैं? क्या हमारे पास हंसने का कोई और तरीका नहीं है?

Lallantop से साभार.

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