नक्सलियों ने जवानों को क्यों मारा?

पिछले दो सालो से लोगो कें बीच एक सवाल बड़ा ही खास रहा वो ये कि कट्टपा ने बाहुबली को क्यों मारा? तरह तरह कें पिक्चर तरह तरह कें मैसेज दो सालो तक सोशल मीडिया मे घूमता रहा और ये ही सवाल पूछता रहा कि कट्टपा ने बाहुबली को क्यों मारा?  

और अब जबकि फ़िल्म रिलीज़ हो गई तो सब चल दिए अपनें इस सवाल का जवाब ढूँढने,  सवाल बहुत ही बड़ा और जरुरी था ना जवाब ढूंढना लाज़मी था . 

पर एक सवाल ऐसा है जिसका जवाब ढूंढना सच मे बहुत ज़रूरी है , पर किसी को ज़रूरत ही महसूस नही होती कि इस सवाल का जवाब ढूंढा जाये.

आप सोचते होंगे कि ऐसा कौन सा सवाल है जो 540 करोड कमाने वाला  बाहुबली से भी बड़ा हो गया तो जनाब वो सवाल है कि नक्सलियों ने हमारे जवानों को क्यों मारा?  

क्यों बोलती बंद हो गई आप सब कि?  अबतक तो आपको बाहुबली का जवाब मिल ही गया होगा पर इस सवाल का जवाब कब मिलेगा?  कोई बतायेगा .. 



हम बेपरवाह हो कर ज़िंदगी जिये जो इस बात की परवाह करते हुये अपनी जान गवा देते है, हम उन वीर जवानों कि परवाह क्यों नही करते है? 
स्कूलों मे हम नागरिक शास्त्र कि पढ़ाई करते है इसमें हम अपने कर्तव्य और अधिकार कें बारे मे जानते है पर हम उन्हे किताबों मे ही रहने देते है असल ज़िंदगी मे शामिल करते ही नही, फालतू कि चीज़ों कें लिये हम हो हल्ला मचाते फिरते है 

कितनी अजीब बात है कि एक काल्पनिक केरेक्टर बाहुबली की मौत का राज जानने के लिए पूरा देश थिएटरों पर उमड़ा पड़ा है । काश कि इतने लोग मिलकर सरकार के सामने खड़े होकर यह पूछते कि बताओ आतंकवादी और नक्सलवादी हमारे फौजियों को कैसे मार  रहे हैं, तो देश की तस्वीर ही बदल जाती ।

सभी को ये जानना है कि "कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा" मगर ये कोई नही जानना चाहता कि "नक्सलियों ने हमारे जवानों को क्यों मारा"

किसी का रेप हो जाये, किसी कि हत्या हो जाये तो हम कैंडिल मार्च निकालते है, सड़क जाम करते है पर सैनिकों को सरे आम थप्पड़ मारा जाये, पत्थर मारे जाये या शहीदों का अपमान किया जाये तो मानो उस वक्त हमारे दिल ओ दिमाग पर लकवा मार जाता है कोई काम ही नही करता 

दोस्तों असल मायने मे देश कें नागरिक बनने कि कोशिश करो अपनें हुक्ममरानो  से ये जानने कि कोशिश करो कि ये हालात क्यों बने इसका समाधान क्या निकाला जा रहा है 

देश कें नागरिक हो तो देश कि थोड़ी चिंता कर लो वर्ना आपके लिये पोगो तो है ही.... 

  • ये आर्टिकल अनुराग श्रीवास्तव के द्वारा लिखा गया है ये उनके अपने विचार है.

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